महेन्द्र सिंह "राज"
कृष्ण की सखी द्रोपदी,
सतमार्गी युधिष्ठिर की भार्या,
द्रोपदी का चीरहरण
पांचो भाई लाचार,
देखते रह गये दुराचार,
भीष्म प्रतिज्ञा से विवश,
द्रोण कृप पर नमक का कर्ज,
धृतराष्ट्र पर पुत्रमोह
,लेकिन गांधारी को क्या हुआ,
नारी होकर नारी का अपमान,
सह गई,भूल गई ,
नारी कासम्मान,
चीर हरण करने वाले
उसके अपने बेटे थे,
टोक सकती थी
कुपथ पर नि:संकोच
जाते हुए बेटों को,
रोक सकती थी,
महारानी जो थी।
लेकिन उसने ऐसा नहीं किया
जो हो रहा था हो जाने दिया
परिणाम जग विदित है
एक नारी की मर्यादा
नारी में ही सन्निहित है
पुरुष तो साधन मात्र है ।।
माया के हाथों की कठपुतली
जिसने जब चाहा नचा लिया
चक्रवर्ती महाराज
दशरथ, दशों दिशाओं में
जिनका रथ घूमने के लिए
आजाद था,स्वतन्त्र था
एक नारी ,उनकी खुद की
महारानी ने उनके दशों दिश
विजित,अविजित रथ के
पहिए को अपने वचन के
बाणों के प्रहार से जाम कर दिया
और रघुवंश के सूर्य को
असमय काल कवलित कर दिया
नारी महिमा बहुत अपार
पार ना पाया अब तक संसार।।
महेन्द्र सिंह "राज"
मैंढीं चन्दौली उ. प्र.
9986058503