कवि बलवान सिंह कुंडू 'सावी 'की रचनाएं

 


ढपोर पंख


दूर तक लंबी उड़ान के लिए

चाहिए सपनों के छोटे -छोटे पंख

कल्पना से भरे पंख

एक हल्की- सी दुम भी

उड़े जो केवल अपनी धुन में

और अनवरत उड़ता चला जाए

परिश्रम के कठोर पंख

होते हैं मीनपंख जैसे

जो ऊंचा उड़ने के प्रयत्न में

डूबते -गिरते रहते बार- बार

नीले जल के तल में

पर एक इंच भी कहां डिग पाते

ऊंचा उड़ने हेतु अनंत में

चाहिए बाज -से डैने

या ढपोर पंख

जो पंख फैलाने का स्वांग भरे

दिखाए ख्वाबी पंख से

आसमान में उड़ने के

सुंदर -सुंदर सपने

सदा यही रहा हर तंत्र में

एकतंत्र, लोकतंत्र या कुलतंत्र में

जहां कोमल पंख छिप आवरण में

रहता सदा इस वहम में

बचाता रहा है उसे ढपोर पंख

सूरज की झुलसाती दहन में

कौवे हर युग, हर तंत्र में

स्वर बदल -बदल कर

नोचते रहते हैं मीनपंख

तभी तो इतना ऊंचा

उड़ पाते हैं ढपोर पंख

कुछ तुकबाज ढपोर पंख को

बना देते हैं अलौकिक

स्याही में डूबे उसी पंख से

कुछ कलमकार ढपोर पंख को

देते रहते हैं चुनौती

मिल जाते हैं जब साथ - साथ

छोटे - छोटे पंख और मीनपंख

तब बन जाता है एक विशाल डैना

 ये सदियों में होता है कभी-कभार

फिर किसी दिव्य पंख से

होती आई है महाकाव्य रचना


सरिता


सविता से निकली किरणें मुस्काके कह गई

मेरे स्नेह स्पर्श से जीवन सरिता बह गई


सदियों से जमीं बर्फ दी न कोई गर्माहट थी

जड़ बनी थी जिंदगी कहां उसमें आहट थी

सुख तो आना ही था जब दुख हंस के सह गई

मेरे स्नेह स्पर्श से जीवन सरिता बह गई


कल- कल कर के ध्वनि झरने मीठे नाद करे

कोई चहचाह के कोई गीत से सारा जग आह्लाद करे

मेरे आंचल की छुअन से प्रकृति सारी लहलह गई

मेरे स्नेह स्पर्श से जीवन सरिता बह गई


तट पर बैठ रमणी अपने प्रीतम के गान गाए

कंचन सी काया भी मुझसे संकोच खाए

सांवरिया सागर से मिलने को मैं आगे बह गई

मेरे स्नेह स्पर्श से जीवन सरिता बह गई

सविता से निकली किरणें मुस्काके कह गई


कवि बलवान सिंह कुंडू 'सावी '

प्राध्यापक रा व मा जाखौली

Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
गाई के गोवरे महादेव अंगना।लिपाई गजमोती आहो महादेव चौंका पुराई .....
Image
पीहू को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं
Image
ठाकुर  की रखैल
Image
कोरोना की जंग में वास्तव हीरो  हैं लैब टेक्नीशियन
Image