डाॅ. अनीता शाही सिंह
कभी डाटती है तो कभी गले लगा लेती है माँ
हमारे आँखों के आँसू अपनी आँखों में समा लेती है माँ
अपने होंठों की हँसी हम पर
लुटा देती है माँ
हमारी ख़ुशियों में शामिल होकर
अपने सारे ग़मों को भुला देती है माँ
दुनियां की तपिश में हमें आँचल की शीतल छाया देती है माँ
ख़ुद चाहे कितनी भी थकी हो
हमें देखकर अपनी थकान
भुला जाती है माँ
प्यार भरे हाथों से हमेंशा
हमारी थकान मिटा देती है माँ
बात जब भी हो लज़ीज़ खाने की
तो हमें याद आती है माँ
रिश्तों को खूबसूरती से निभाना
सिखाती है माँ
लफ़्ज़ों में जिसे बयां नहीं किया जा सके
ऐसी होती है माँ
भगवान भी जिसकी ममता के आगे
झुक जाये ऐसी होती है माँ ।।
डाॅ. अनीता शाही सिंह
प्रयागराज