योद्धा ने बदला है रूप


कपड़े से पहचान नहीं है 

कभी खाकी तो कभी सफेद।

मन मे संकल्प लिए हुए हैं 

इस आफत में बचाना देश।।


योद्धा के रूप हैं बदले 

और बदले उनके हथियार।

कभी हाथ में स्टेचर उनके 

जिसे ले जाते वो अस्पताल ।।


ढाल तलवार नही योद्धा के

 केवल ढाल है मास्क का साथ।

फर्क नही अमीर गरीब में

 सबसे है एक सा वर्ताव।।



बाजी लगा जान का योद्धा

 कूद पड़ा है युद्ध मैदान।

अनजान और मक्कार दुश्मन से

डटा हुआ है युद्ध मैदान।।


इनके पास न श्वास हवा है 

इंजेक्शन का भी है अभाव।

बिस्तर भी कम पड़ गए है 

फिर भी डटा ये योद्धा आप।।


दाव लगा अपने जीवन का  

झोंक दिया अपना सर्वस्व ।

परवाह किये बिन अपने जीवन का 

मानव रक्षा का लेकर संकल्प ।।


इन योद्धा के अथक मेहनत को

 याद रखेगा सकल जहाँ।

अलग अलग कपड़ो में योद्धा

 निकल पड़े हैं बचाने जान।।


उन गिद्धों को कैसे थूकें  

 जो लिप्त हुए हैं कालाबाजार।

जिसके जघन्य और कलुषित आचरण से

मानवता हो रहा शर्मसार।।


श्री कमलेश झा

दिल्ली

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