डॉ पंकजवासिनी
जिंदगी की हसीन कुलबुलाहट!
जा दुबकी है किसी कोने में!!
सारे सलोने सपने कुचल गए हैं!
वैश्विक महामारी के घनतम अँधेरे में!!
लाशों की लंबी कतार में
धुआँ धुआँ हो रही जिंदगी!!!
चारों ओर पसरा है
मौत का सन्नाटा...!
महामारी रोज मार रही
चांटे पर चांटा...!!
कोई घर नहीं है बचा
इसकी आतंकी मार से!
काट रहा है कोरोना मनुज को
मौत की धार से!!
चारों ओर गुंजित हैं...
सिसकियाँ पर सिसकियाँ!!
प्रभु तू दिखला दे धरा को
जिंदगी की कुलबुलाहट भरी झलकियाँ!!!
*डॉ पंकजवासिनी*
असिस्टेंट प्रोफेसर
भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय