कवि मुकेश गौतम
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जब से आयी गर्भ में दुखी हुए माँ बाप।
बेटे की जो आस में करतें थे नित जाप।।1।।
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मैं बेटा ना बन सकी यही रहा संताप।
मरवा देते गर्भ में नहीं समझते पाप।।2।।
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पा जाऊं यदि जन्म मैं पूरा घर खामौश।
बेटा जैसी क्यूँ नहीं यही मुझे अफसोस।।3।।
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पग-पग पर पीड़ा मिली मिला न थोड़ा तोष।
मुझे विधाता ने गड़ा है मेरा क्या दोष।। 4।।
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सदा नजर में ही रही भाई को सब छूट।
भारी मन से जी रही पीकर पीड़ा घूँट। ।5।।
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माँ के संग हर काम में सदा दिया था साथ।
भाई के हर कष्ट में जागी थी हर रात।।6।।
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सदा शीश पर ही रखा पापा का आदेश।
सुनना आदत सी बनी न आया आवेश।।7।।
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हर दिन घर की आरती तुलसी पूजन रोज।
साथ्या संझ्या मांडणा है बेटी की खोज।।8।।
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सबको आदर भाव दे फिर भी बेटी बोझ।
सदा उपेक्षित सी रही क्यूँ बेटी हर रोज।।9।।
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बेटा सम बेटी गिनों बेटी जग की शान।
बेटी की रक्षा से ही मेरा देश महान।।10।।
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-रचनाकार
कवि मुकेश गौतम
डपटा,बूंदी(राज)