निर्मला जोशी' निर्मल'
बच्चों में हूँ कच्चा आम
पत्थर मुझे न मारो तुम
अभी तो बिल्कुल कच्चा हूँ
देखो छोटा बच्चा हूँ
चोट बहुत लगती है मुझको
पर समझ नहीं पाते हो तुम
तुम क्या जानो बच्चो मुझको
कितनी पीड़ा होती है
जब जब मुझको पत्थर मारो
मेरी आत्मा घायल होती है
प्यारे बच्चो बात समझ लो
हम में भी तो जान है
हमसे ही यह पृथ्वी सुंदर
जीवित सकल जहान है
हम तो जग के प्रिय परिजन हैं
प्यार सभी से करना सीखा
पर बदले में मिला सदा ही
व्यवहार सदा कड़ुवा औ तीखा
सदा उपेक्षित किया प्रकृति को
क्यों न पीड़ित हो जग सारा
प्रकृति नैनों से सदा बहाया
तप्त क्षुधित जल खारा खारा
अभी समय है संभल ही जाओ
वरना कल संकट में घिर जाओगे
अभी पानी की त्राहि त्राहि है
कल प्राण वायु भी ना पाओगे।
निर्मला जोशी' निर्मल'
हलद्वानी, देवभूमि
उत्तरा खण्ड।