ग़ज़ल
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हम लिखेंगे हर फसाना जब तलक है ज़िंदगी
ढूंढ़ लेंगे आशियाना जब तलक है ज़िंदगी।
हौंसला मन में रहे तो है असंभव कुछ नहीं
हम बना लेंगे ठिकाना जब तलक है ज़िंदगी।
धूप बारिश सर्द गरमी देन है भगवान की
प्राण लड़कर है बचाना जब तलक है ज़िंदगी।
है नहीं कोई जहां में पीर अपनी बाँट ले
है पसीना खुद बहाना जब तलक है ज़िंदगी।
हर घड़ी मिलती नहीं है मन मुताबिक चाहतें
भाग्य खुद ही है जगाना जब तलक है ज़िंदगी।
भेदकर चट्टान को अपने लगन की धार से
राह नूतन है बनाना जब तलक है जिंदगी।
कह रही है आज युग से बात ममता मंजरी
फूल पत्थर पे उगाना जब तलक है ज़िंदगी।।
घड़ी दो घड़ी तू ठहर जा कयामत
घड़ी दो घड़ी तू ठहर जा कयामत
अभी पग रही है हमारी मुहब्बत।
न उससे मिली मैं,न मुझसे मिला वह
निभाए नहीं हम मिलन की रवायत।
बिगाड़े नहीं हम जहां में किसी की
नहीं है हमारी किसी से अदावत।
सजा मौत की तुम न देना हमें यूँ
न करना कभी यूँ भयानक शरारत।
पता है हमें भी ख़ुदा हैं रहमदिल
महज़ क्यों हमें है ख़ुदा से शिकायत।
किए हैं हजारों ख़ुदा से गुजारिश
रहे प्यार अपना हमेशा सलामत।
चली जा कहीं तू न आना दुबारा
करो मंजरी पे ज़रा तुम इनायत।
दोहे
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लाशों का अंबार है,तड़प रहे हैं लोग।
दवा-सुई भी है नहीं,यह कैसा दुर्योग ?
लाशें बहकर आ रही,सड़ी-गली अविराम।
मचा हुआ चहुँ ओर है,यथ त्राहि-त्राहिमाम।।
कोरोना संताप से,जर्जर है संसार।
नित्य धरा पे हो रहा,भीषण नर संहार।।
स्थिति भारी विकराल है,लोग हुए बदहाल।
काल ग्रसित नित हो रहे,युवा वृद्ध अरु बाल।।
काल भयानक रूप धर,निसदिन करे प्रहार।
मौन पड़े भगवान हैं,कौन करे उद्धार ?
दोहे
ऊँची लहरें कह रहीं,आया है तूफ़ान।
मछुआरे घर पे रहो,खतरे में है जान।।
चक्रवात आया यहाँ, सागर है उत्ताल।
हम भी वश में हैं नहीं,समय चली है चाल।।
हो जाएँ जब शांत हम,आना सागर तीर।
धीर धरो तबतक ज़रा,होना नहीं अधीर।।
समय-चक्र अतिशय बड़ा,हम हैं इसके दास।
थम जाए तूफ़ान जब,आना मेरे पास।।
डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"✍🏼
*गिरिडीह (झारखण्ड )*