डॉ शाहिदा
दिल की बातें हर किसी को बताना छोड़ दो,
महफ़िलों में जाना मिलना मिलाना छोड़ दो ।।
रोज़ रोज़ की ख़बरों से हम तो हैरान हो गये,
ऐसा करो..कल से अख़बार मंगाना छोड़ दो ।।
गर मोहब्बत कर नहीं सकते इन्सान से तुम,
जहर उगलना और नफ़रत फैलाना छोड़ दो ।।
तुम पहले गिरेबान में अपने झांककर देखो,
औरों की कमी पर उंगलियाँ उठाना छोड़ दो ।।
मुँह जब खोलोगे तुम तो अंगारे ही उगलोगे,
ख़मोशी फिर भी बेहतर है चिल्लाना छोड़ दो ।।
ओस से, कहो कहाँ, किसकी प्यास कब बुझी ,
ये झूठी बातें और झूठे क़िस्से सुनाना छोड़ दो ।।
हर तरफ़ मौत का मंज़र है, सबब कोई भी हो,
कुछ तो रास्ता निकालो, बातें बनाना छोड़ दो ।।
मुक़द्दर में जो भी लिखा था मुझको मिल गया ,
बेवजह तुम मेरे खयालों में अब आना छोड़ दो ।।
वक्त रोके कब रुका,मुशकिल है उसको रोकना,
तुम रोक लोगे वक्त को ये शर्त लगाना छोड़ दो ।।
आईना तो आईना है इसमें हूबहू दिखता है सब,
मशविरा है,ख़ुद को ख़ुद से आज़माना छोड़ दो ।