पद्मा मिश्रा
माँ औपचारिकताओ में में नहीं,
हमारी संवेदनाओं में जीती है..
जब हम रोते हैं ,
तो रोती है , माँ,
हमारी खुशियों में ,सुखों में,
हमेशा साथ होती है -माँ',
जिंदगी के अकेलेपन में,
साथ कोई न हो,
पर ममता क़ी छाँव बनी ..
हमारे आसपास होती है-माँ'',
हमारे आंसुओं से दर्द का अहसास मिटाती,
सर्द होठों पर,
सुकून क़ी एक मुस्कान होती है -माँ'',
साथ न रहकर भी, हमारी यादों में,
पल पल साथ होने का विश्वास होती है-माँ''
जग क़ी उपेक्षाओं में ,..जीवन संघर्षों में,
नेह रस बरसाती,
एक स्नेह भरा हाथ होती है-माँ''.
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