आँधियों से गिराए जाएंगे
आशियाँ हम बनाए जाएंगे
कुछ निशां पाँव के बनाने हैं
वर्ना कल को भुलाए जाएंगे
काट डालेंगें सब्ज़ पेड़ों को
घर में गमले लगाए जाएंगे
घर का छप्पर उदास होगा फिर
गर कबूतर उड़ाए जाएंगे
धूप उतरेगी कैसे आँगन में
घर जो ऊँचे बनाए जाएंगे
हर घड़ी मौत दे रही दस्तक
कब ये मनहूस साए जाएंगे
थोड़े ग़म तो दबा लिए दिल में
कैसे लश्कर छुपाए जाएंगे
जब तलक धड़कनों की सरगम है
गीत उल्फ़त के गाए जाएंगे
फिर बग़ावत करेंगे दीवाने
फिर से पहरे लगाए जाएंगे
खूबियाँ याद कौन करता है
एब ही बस गिनाए जाएंगे
बात फूलों की मान जाओ तुम
वर्ना पत्थर उठाए जाएंगे
हो मुक़ाबिल हवा या तूफ़ाँ हो
पर दिया हम जलाए जाएंगे
ज्योति मिश्रा
पटना