मुड़ती सिकुड़ती कहीं न रूकतें पथ
कहीं पगडंडी कहीं लंबी चौड़ी सी सड़क ।।
सड़क हां! ये सड़क सिर्फ सड़क नहीं
करती कोशिश जिंदगी को पकड़ने तक ।।
जमीन पर बनी ये चौड़ी सी सड़क
पहुंचाती आदमी को ख़ास मुक़ामा तक ।।
कितना भी चल लें थकतें नहीं सड़क
बचपन जवानी और बीतती बुढ़ापा तक ।।
जानें कितनी स्मृतियां हृदय में समेटें
मुफ़लिसी की रोटी से लेकर अमीरी तक ।।
भुट्टे गुब्बारें हो या आइसक्रीम चाट वाले
हैं गवाह सूरज से लेकर दिया जलानें तक ।।
शाम की चाय की मस्ती औ प्रभात फेरियां
परी लोक से आई सुंदर-सुंदर तितलियां तक ।।
न जाने कितनों की रोजी - रोटी है पलती
सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक ।।
हाय ! यह कैसा मोड़ आ चुका है आज
दिल जोरो से धड़कने लगा अब धक-धक ।।
सड़क का किनारा जगह-जगह से देखों
टूट कर मिलता पानी में सब चटक चटक ।।
उदास सी दिखती है रोती अब यह सड़क
आखिर थक ही गई ,भार सहती कब तक ।।
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सुनीता जौहरी
वाराणसी उत्तर प्रदेश