मीनू 'सुधा
श्रम ही कर्म, श्रम ही धर्म
श्रम ही जीने का आधार।
हांँ ,जी हांँ! मैं श्रमिक हूँ,
करता हूंँ खून- पसीने का व्यापार।
एड़ी से चोटी एक करूँ,
नित कूआँ खोदूँ पेट भरूँ।
जब थक कर दो पल रुकता हूंँ,
ठंडी सी आहें भरता हूंँ ,
आंँखों के आगे धुंधला -सा
एक चित्र उभर कर आता है,
बाहें फैलाए , मुन्ना मेरा
क्या लाए? पापा कहता है,
चूल्हे के आगे पत्नी भी
राशन की राहें जोह रही,
मुन्नी अकुलाई आंँखों से
पापा का रस्ता देख रही।
फिर उठता हूं दमखम से मैं,
ना थकने का मुझको अधिकार।
हांँ, जी हांँ! मैं श्रमिक हूँ
करता हूँ खून -पसीने का व्यापार।
मीनू 'सुधा,(मीनू त्रिपाठी)
बस्ती, उत्तर प्रदेश