!!मेरा हृदय उद्गार!!
!!किसान गेहूं की बाली और तिरंगा!!
धूप तपिश को सह सह कर
मेहनत करता है जब किसान
रंग गेहुआ हो जाता है
मिलता नहीं उसे आराम
कठिन परिश्रम के कारण
चेहरे पर झुर्री पड जाती है
मिट्टी में ही रह रह कर के
पांव विवाई फट जाती है
देख फसल की अच्छी खेती
दिल की रौनक बढ़ जाती है
तब बुनते सपने कई सुनहरे
मन में आशा जग जाती है
जितनी बार देखते फसलें
उतनी ही खुशी भर जाती है
गेहूं का पौधा बडा हुआ
जब उसमें बाली आ जाती है
पहले हरे रंग की बाली
बाद सफेद हो जाती है
हुई फसल जब पकने को
तो केसरिया हो जाती है
हमको लगता देख सोचकर
ऐसा भी हो सकता है
भरे तिरंगे इस झंडे में
रंग यही हो सकता है
जब लगे बनाने झंडे होंगे
तब आई होगी रंग की याद
कौन सा रंग भरू इसमें
फिर आया होगा मन में विचार
क्रमबद्ध रंग तब लिया फसल का
डाल दिया इस झंडे में
जोश भर दिया नवजीवन का
देश प्रेम के झंडे में
एक तिरंगा घर-घर को
उत्साहित करता रहता है
एक तिरंगा राष्ट्रध्वज का
जो देश प्रेम भरता रहता है
गेहूं के बाली से ही इसके
रंगों का निर्माण हुआ होगा
देश प्रेम से भरा तिरंगा
सब में भाव भरा होगा
!!मेरा हृदय उद्गार!!
! सच्ची प्रार्थना !!
सच्चे भाव करे जो मन से वही प्रार्थना होती है
शब्द नहीं जब भाव गूंजते ईश्वर को प्रिय होती है
कितनी अच्छी करें प्रार्थना भाव नहीं यदि होती है
नहीं एकाग्रता मन में तेरे तो व्यर्थ प्रार्थना होती है
भाषा का महत्व तो इतना भाव जगा दें मन में वह
नहीं लाभ मिलता है उसमें भटक रहा हो जब मन ये
जब जीवन में कष्ट में होते ईश्वर से कष्ट बताते हैं
करते रहते याद उन्हे हम और सहायता मांगते हैं
जो हुआ ईष्ट से संवाद यहां जब आंखें नम होती हैं
भाव उठा दिल के अंदर वही प्रार्थना होती है
बिना शब्द उच्चारण के भी जब हम प्रार्थना करते हैं
ह्रदय भाव से प्रेरित होती पहुंच ईष्ट तक जाती है
लहर चेतना की जब मन से अव्यक्त रूप में उठती है
भावात्मक मन का यही भाव सच्ची प्रार्थना होती है
गिरिराज पांडे
वीर मऊ
प्रतापगढ़