जब व्यंग्य बना वरदान ...

   

  अमृता पांडे  

रघ्घु आज चौपाल से जल्दी लौट आया था।आज काफी दिनों बाद उसने ममता का चेहरा ध्यान से देखा।आंखों के नीचे गड्ढे और कालिमा थी।पच्चीस की उम्र में वह पैंतीस-चालीस से कम नहीं लग रही थी। अगले दिन उनके विवाह की पांचवीं वर्षगांठ थी। 

          इतनी ही पुरानी बात है, जब रघ्घू लड़की देखने   पड़ोस के गांव में गया तो उसे प्रस्तावित लड़की की जगह उसकी चचेरी बहन ममता पसंद आ गई। गोरा रंग रूप, तीखे नैन नक्श और सीधी-सादी ममता में कोई कमी न थी। उधर चचेरी बहन ने भी कोई आपत्ति नहीं की। एक तो लड़की, वह भी गांव की, कुछ बोलने का साहस भला कहां जुटा पाती। उसे देखने फिर कभी कोई नया लड़का आ जाएगा.......

    और इधर चट मंगनी पट ब्याह हो गया। ममता घर गृहस्थी में व्यस्त और रघ्घु दिन भर लाला की दुकान संभालकर शाम को दोस्तों के साथ गांव में नीम के पेड़ के नीचे बैठ जाता। वही जमघट लगता, इधर उधर की बातें होती और ताश की बाज़ी लगती। वही दोस्तों के चाय पानी पर भी पैसे खर्च करता। रघ्घू के कई दोस्तों की शादी हो चुकी थी और धीरे-धीरे चौपाल में उनका आना कम हो गया था। मगर रघ्घू को इतने सालों तक कोई फर्क नहीं पड़ा था। ना उसे ममता की फिक्र थी, ना छोटी सी बेटी की। 

लेकिन आज वह काफी जल्दी लौट आया था। लगता था दुकान से सीधे ही घर चला आया। कुछ थका सा लग रहा था वह। ममता ने चाय बनाई और थकान की वजह पूछी। वह इतना ही बोल पाया था ,"कल हमारी शादी की वर्षगांठ है, मैं दुकान से छुट्टी ले लूंगा । कल हम बच्चों को लेकर कहीं जाएंगे और अब मैंने दुकान से रोज़ सीधे घर आने का फैसला किया है।"

अगले दिन जब जागा तो उसे ममता अलग रूप में नजर आई। सिंदूर से भरी हुई मांग, बड़ी सी लाल बिंदी और सलीके से पहनी हुई साड़ी में वह कुछ-कुछ पहले की ही तरह सुंदर नजर आ रही थी।

रघ्घू के मन मस्तिष्क में कल चौपाल में गोकुल की कही बात और दोस्तों की हंसी गूंज रही थी "अरे देखो उधर, फिर चला आया है वह, हम तो कुंवारे हैं, लेकिन इसके तो घर में बीवी बच्चे हैं, बेवकूफ कहीं का। खैर...चलो, अपना क्या जाता है ,आज फिर मुफ्त में चाय-नाश्ता मिलेगा।" फिर एक जोरदार टाका गूंजा था।

और उधर ममता रघ्घू के  इस बदले व्यवहार से आश्चर्य मिश्रित खुशी में डूबी  हुई थी।

                  

                     अमृता पांडे  

                  हल्द्वानी  नैनीताल

                 

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