!!मास्क लगाए चले जा रहे हैं!!
गिरिराज पांडे
दिखाई नहीं देता चेहरा अब उनका
लगा मास्क ओ तो चले जा रहे है
कैसे मैं देखूं ये रोशन सा चेहरा
इच्छा दबाए चले जा रहे हैं
मुस्कान आंखों पर रखकर के अपने
छिपा करके लाली चले जा रहे हैं
ढककर के चेहरे को आंखों से अपने
आंखें लड़ा कर चले जा रहे हैं
झुका कर के पलके यूं नजरें मिलाकर
इशारा ओ हमको किए जा रहे हैं
करके भी पर्दा हमेशा ही अपने
पर्दे के बाहर चले जा रहे हैं
मिली जो नजर उनके भाव में डूबा
आंखों से मदिरा पिए जा रहे हैं
जालिम शिकारी सा बैठा हूं मैं भी
कैद दिलों में किए जा रहे है
गिरिराज पांडे
वीर मऊ
प्रतापगढ़