कटते वृक्ष कह रहे है अब तो पेड़ लगालो



प्रतिभा दुबे

कट रहे है निरंतर वृक्ष, धरा हो रही हैं खाली!

सूख रही धरती की गोदी, वर्षा कैसे हो मतवाली।।


जिस प्रकृति ने मानव को, जन्म से दिया भोजन पानी!

उस प्रकृति माँ की झोली, मनुष्य ने खाली कर डाली।। 

    

पिघलते ग्लेशियर कह रहे, भुगतान तो करना होगा अब!

बिगड़ा स्वरूप और संतुलन तो,मानव को सहना होगा अब।।


कटते वृक्ष कहे तुमसे यह, समय है अभी थोड़ा संभालो!

आने वाली पीढ़ियों के लिए, भूमि पर थोड़ी नमी बचालो।।


हो रहा पर्यावरण दूषित, अब कहां रही है खुशहाली!

कई प्रजाति लुप्त हुई वन की ,अब है मनुष्य तुम्हारी बारी।।


न रहेंगे वृक्ष जब धरती पर,तो कैसे जीवन यापन होगा!

मंगल ग्रह पर देर बहुत है, तुम अपनी धरा को बचालो।।


सूख रहा जल का स्तर भी, नदियां रेगिस्तान हुई है!

कटते वृक्ष यह कह रहे है , अब तो पेड़ लगा लो।।


प्रतिभा दुबे

 (स्वतंत्र लेखिका)

ग्वालियर मध्य प्रदेश

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