जुदा करना हाेता है ताे यहाँ मिलाता ही क्याें है ?
बेवफा बनाना हाेता है ताे वफ़ा कराता ही क्याें है ?
इश़्क के चक्कर में इस तरह बीत जाता है दिन
जब सांझ भी ढ़लनी हाेती है ताे प्रभात कराता ही क्याें है ?
गुमनाम की दुनिया भी यहाँ अज़ीब सी ही लगती है
जब नाम देना नहीं ताे यूं बदनाम कराता क्याें है ?
तुझे कभी हमसे मिलना ही नहीं किसी डगर में
फिर हमारी राह में तू कांटा बन आता ही क्याें है ?
Shivam pachauri
Glass industrial area
Firozabad