-मुकेश गौतम
=======================
वसुधा की रोनक बदल गयी, दिनकर तेरे आ जाने से।
पथ का भी कोई भान न था,अंधकार छा जाने से।।
--------------------------------------------
जब तेरी प्रथम रश्मि ने भूमण्डल आँचल को छुआ।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त तम,पल भर में ही दूर हुवा।।
काम वासना में रत जग को,कुछ खो जाने का ह्रास हुआ।
घोर तन्द्रा में लीन मनुज को लक्ष्य का आभास हुआ।।
सब की करवटे बदल गयी घोर अंधकार के जाने से।
वसुधा की रोनक बदल गयी दिनकर तेरे आ जाने से।।
-------------------------------------------
खगकुल नीडो को छोड़ चलें कृषक खेतों को दौड़ चले।
मंद बयार के चलने से तरुवर आपस में गले मिले।।
लता बेल भी सिक्त हुयी प्रकृति की पावस बूँदों से।
वसुधा की रोनक बदल गयी दिनकर तेरे आ जाने से।।
--------------------------------------------
दुख की इस काली छाया पर सुख का नव पुंज प्रभात हुआ।
क्षणिक सुखों में लीन मनुज को पथ विचलन संभ्रांत हुआ।।
जग का प्रमाद योहि दूर हुआ तेरा आलोक मिल जाने से।
वसुधा की रोनक बदल गयी दिनकर तेरे आ जाने से।।
=======================
रचनाकार
कवि मुकेश गौतम
ग्राम डपटा बूंदी (राज)