संघर्षो से जूझ-जूझ के
तुम आगे बढ़ना सीखो
राह कठिन कमजोर डगर है
फिर भी तुम बढ़ना सीखो
हर राही का साथ निभा
मानवता का दे संदेश
जीवन में रंग भरना सीखो।
संघर्षो से जूझ-जूझ के
तुम आगे बढ़ना सीखो।
माना साथ नही जमाना
कल ये ही रोकर पछतायेगा
तुम फिर भी हाथ थामना
ये स्वयं शर्म से झुक जायेगा
संघर्षो से जूझ-जूझ के
तुम आगे बढ़ना सीखो।
आज इंसानियत हुई खाक है
लूट-खसोट का खुला बाजार है
फिर भी देव-तुल्य दे साथ रहे है
धरा का संतुलन बना रहे है।
संघर्षो से जूझ-जूझ के
तुम आगे बढ़ना सीखो।
देख रहा है आज ईश भी
कुछ कमियाँ जो हुई कृति में
उनका हल भी अभी मौन है
जान गया वो पापी कौन है।
संघर्षो से जूझ-जूझ के
तुम आगे बढ़ना सीखो
ललिता पाण्डेय
दिल्ली