कवियत्री पद्मा मिश्रा की रचनाएं

 


हम सर्जक हिन्दी भाषा के--


हम सर्जक हिन्दी भाषा के हिन्दी की कथा सुनाते हैं

हम अक्षर अक्षर दीप तले अंतर की व्यथा भुलाते हैं

 मां वाणी का श्रृंगार बनी जो सर्जन का आधार बनी

कविता के भावों में पलकर साहित्य-गगन का सार बनी

 तुम संविधान की हो भाषा हर जन मन की तुम अभिलाषा

पर मां तेरे प्रिय चरणों में हम कितने दीप जलाते हैं?

 हम सर्जक हिन्दी भाषा के हिन्दी की व्यथा सुनाते हैं

 हिन्दी के बल पर राज किया फिर हिन्दी का अपमान किया

 अनगिनत किताबें लिखकर भी खुद का ही सम्मान किया

 हम राजनीति के मोहरों पर तुमको एक "चाल" बनाते हैं

 तुम राष्ट्र भक्ति की ढाल बनी आजादी का सम्मान बनी

 तुम अंतरीप-काश्मीर तलक निज भाषा का सम्मान बनी

प्रति वर्ष तुम्हें मंडित करते हम हिंद-ध्वजा फहराती हैं

 हम सर्जक हिन्दी भाषा के हिन्दी की कथा सुनाते हैं,,,, 


तुम वसंत बन आ जाओ


तुम वसंत बन आ जाओ प्रिय

मन आंगन सुरभित हो जाए

भाव सुमन के मृदुल गान से 

पात पात गुंजित हो जाएं,

हरित डाल हो गई वसंती

जवाकुसुम की बढ़ी लालिमा

मुसकाया है हरसिंगार अब

जूही की संचरित अरुणिमा

हो मधुमास‌ प्रिय धरा गगन में

तन मन चिर पुलकित हो जाए

तुम वसंत बन आ जाओ प्रिय

मन आंगन सुरभित हो जाए,

कूक पिकी की‌ ,हो मन भाती

गुनगुन भंवरों का गुंजन हो,

नेह-द्रुमो में पुष्प खिल उठें

मधु-रस ‌से भींगा जीवन हो

कुछ ऐसा जादू बिखरा दो

मन श्यामा मधुवन हो जाए

तुम वसंत बन आ जाओ प्रिय

मन आंगन सुरभित हो जाए



बुद्ध हो‌ तुम 

आसान नहीं होता

सिद्धार्थ से बुद्ध हो पाना

भावनाओं से सहज मुक्ति भी आसान नहीं होती,

मन वचन और कर्म से

इन्द्रियातीत हो,आत्मलीन हो जाना,

यह भी सरल नहीं था, सिद्धार्थ!

पर तुमने जीत लिया था मन को सहज ही,

संसार से दूर

मन की विचार वीथियो में

भटकते अनगिनत सवालों को भेदकर

ज्ञान के प्रकाश को,खोज निकाला

तुम विजयी रहे,

नश्वर है विश्व का कण कण

पर शाश्र्वत है मानवता,दया,करुणा, संवेदना

जीवन की पवित्रता

यही है धर्म,यही संस्कार है मन का

बुद्ध हो तुम,!

नमन जगती के कण कण में बसी 

उस भावना के धन को,

नमन है,,,बुद्ध हो तुम!!



बहुत याद आती है मां !


+भावभरा मन भींगी बातें

सूने अंतर की फरियादें

मॉ ममता की शीतल छाया

मॉ जीवन की स्नेहिल यादें

मॉ सुखकी मीठी दोपहरी

मॉ अमृत रस की बरसातें

मॉ जीवन की अमित कहानी

मॉ भींगी आंखों का पानी 

शूलभरी राहों पर चलकर

राह दिखाती हमें सुहानी

मां का आंचल,सुख का संबल

प्यार लुटाता निशिदिन‌अनुपल

मां बचपन का भोला सावन,

सुधियो का मृदु मुखरित आंगन

मां जीवन का अटल सहारा

स्मृतियों में साथ तुम्हारा,

बहुत याद आती है मां!!,


पद्मा मिश्रा 

जमशेदपुर झारखंड

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