" एहसास हूं मैं"
खुशियों की तिजोरी की सुलभ सी कुंजी हूंँ,
जीवन के अनुभवों की अक्षय पूंँजी हूंँ।
तपती दोपहरी में, घने पेड़ की छाया हूंँ,
पिता का स्नेह, मां के आंँचल का साया हूंँ।
भाई के प्यार का, बहन के दुलार का,
भाभी के मनुहार का, स्नेह अनुराग हूंँ
बुजुर्गों के दुआओं में,जीवन का सार हूंँ।
सर्द रातों में रजाई की गर्माहट हूंँ,
तपती गर्मी में शीतलता की आहट हूंँ।
तीज- त्योहार, सुख-दुख साथ साथ होता है,
चोट एक को लगे तो दर्द सभी को होता है।
साथ अगर हो अपनों का तो, खुशियों का अंबार हूँ,
हांँ भाई हांँ! मैं तेरा हंँसता- खेलता "परिवार" हूंँ।
चंद पंक्तियों में, मैं समा नहीं सकता,
"सिर्फ एहसास हूंँ" मैं बता नहीं सकता।
एकता की फ्रेम में मढ़ी तस्वीर की कूची हूंँ,
खुशियों के तिजोरी की सुलभ सी कुंजी हूंँ,
जीवन के अनुभवों की अक्षय पूँजी हूंँ
सभी परिवार के एकता और अखंडता, सुख और समृद्धि हेतु समर्पित
अभिव्यक्ति (नारी की) से
कभी लोगों से ,कभी बातों से,
कभी अपने ही हालातों से,
हर कदम चुनौती देती है,
सृष्टि की सुंदर ये रचना
हर रूप में पूरी होती है।
कभी शांत, सरल ,कभी सीधी सी,
कभी रौद्र रूप,, कभी कोमल सी,
गंगा की बहती धारा सी,
कभी शांत समुद्र किनारे सी।
तू मौन सी इक अभिव्यक्ति है,
इस धरा सी तुझमे शक्ति है,
मीरा की भक्ति है तुझमें,
सीता की क्षमा समाहित है।
आकाश की ऊंँचाई नापे
नापे समुद्र की गहराई,
फिर अबला क्यूँ, बेचारी क्यूँ,
क्यूँ दुःशासन से घबराई।
हर तरफ दुःशासन घूम रहे,
मत देख कृष्ण की राह प्रिये,
बन स्वयंसिद्ध अब बाण उठा
है तरकश तेरा भरा हुआ।
तू दुर्गा बन ,तू काली बन,
यह समय तुझे ललकार रहा,
बन चंडी तू संहार कर
अब सृष्टि का उद्धार कर।
कोई आँके ना तुझको शब्दों में,
कोई सीमा तुझको बांँधे ना।
तू नारी और नारायणी है,
करुणा, ममता और श्रद्धा है
फिर कौन कह रहा है तुझको?
तू सबला नहीं है, अबला है ।
क्या कोई शब्द बना है जो
तेरी समग्र परिभाषा दे,
मां, बहन ,सुता ,जगजननी को
पूजित, वंदित कोई भाषा दे।
मीनू' सुधा'