राकेश चन्द्रा
चाँद, तुम्हें छूने की कोशिश में
सिर्फ बौनापन मिला.
चाँद, तुम्हें पाने की कोशिश में
बस सूनापन मिला.
अब तुम्हें अपलक निहारूंगा......मैं चाँद!
आंगन में लेटे हुए
जब सुनाई पड़ेंगी नन्हे पदचापों
की मासूम किलकारियां
या हवा में लहराती हुई
चूड़ियों का मधुर हास-परिहास;
जब फिर कोई बिना मेहँदी वाली हथेलियां
धधकाएंगी चूल्हों में
रेशमी सपनों की आंच.
चहरदीवारियों की सरहदों के भी पार, चाँद
मैं तुम्हें अपलक निहारूंगा.
मैं भुला दूंगा कुछ देर के लिये
कुछ आदमखोर शब्द.
मैं भुला दूंगा कुछेक स्मृतिदंश
लम्बी छलांगो के.
और तुम्हें अपलक निहारूंगा......मैं चाँद!
राकेश चन्द्रा
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