!!कलियों का मानव से निवेदन!!
गिरिराज पांडे
एक खुशी पाने को खुशियां रौदते सब जा रहे हैं
तोड़ कर डाली से कलियां चुनते ही सब जा रहे हैं
ओस में डूबी कली जो आज टटकी ही खिली
जब तोड़ने को हाथ बढ़ते कांप उठती है कली
रो के कहती हर कली मत तोड़ो मुझको आज तुम
खिलखिलाती ही रहूं मैं रोज ही इस डाल पर
करती बिनती फूल के संग डालियां भी अब यहां
मत अलग मुझसे करो खिलने दो इनको अब यहा
तोड़ दोगे जो इसे तो मुरझुरा जाएंगी ये
खिलखिला कर हंसने दो खुशबू को फैलाएंगी ये
चाहते हो ईश पर अब फूल अर्पण तुम करो
ध्यान में रखकर के उपवन भाव से अर्पण करो
भाव के होते हैं भूखे भाव से अर्पित करो
पूरे उपवन की महकती वादिया व अर्पित करो
ईश जब पाएगा तुझसे कलियां उपवन की सभी
हो के खुश आशीष देगा पाओगे तुम फल सभी
खिलखिलाती वो कली अम्लान और अक्षत रहे
उसको अपने ईश को हम भाव से अर्पित करें
जो जहां जिस रूप में आज हैं कलियां खिली
ईश को हम हर कली वैसे ही अर्पित करें
गिरिराज पांडे
वीर मऊ
प्रतापगढ़