अमृता पांडे
जी चाहता है कभी अलसाई सी पड़ी रहूं बिस्तर में
कुछ और देर सोती रहूं सूरज के निकलने तक
भले नींद खुल भी गई हो पर आंखें मूंदकर लेटी रहूं
क्योंकि सिर दुखता है, शरीर तपता है,
बिस्तर में ही चाय दे जाए कोई
मां के घर की तरह कभी-कभी....
मगर विदाई के समय मां की दी हुई सीख
अचानक जग पड़ने पर मुन्ने की जोरदार चींख,
सोने नहीं देती मुझे, पहले सा होने नहीं देती
मां के मंत्रों का जाप, पिताजी की चाय का आलाप
पति के ऑफिस का समय ध्यान आ जाता है मुझे
मैं बिस्तर छोड़ देती हूं बुझी बुझी सी
खुद को तरोताजा करना चाहती हूं
अपनी ही बनाई एक कप चाय के साथ......।
अमृता पांडे
हल्द्वानी नैनीताल
देवभूमि उत्तराखंड