नीलम राकेश
गगन भेदी तालियों की गड़गड़ाहट के बीच समाज सेविका विद्यावती हाल से बाहर निकलीं । नारी के अस्तित्व एवं स्त्री भ्रूण की हत्या के विरूद्ध उनका जोरदार भाषण लोगों की अंतरआत्मा को हिला गया था । बाहर तक विदा करने आये आयोजकों को पूरी विनम्रता से अभिवादन कर वे अपने घर की ओर चल दीं ।
कार से उतर कर उन्होंने घर के लान में खड़े अपने बेटे से कुछ बातें कीं और कार में जरूरी सामान रखवाने लगीं । कुछ ही पलों में उनका आज्ञाकारी बेटा अपनी सहमी हुई पत्नी और दो वर्षीया बेटी के साथ आकर कार में बैठ गया । विद्यावती के बैठते ही कार दूसरे शहर की ओर चल दी । अनचाही कन्या से मुक्ति पाने जो, भ्रूण रूप में उनकी इकलौती बहू की कोख में पल रही थी ।
कुलदीपक की चाह के आगे समाज सुधारक का मुखौटा उतर गया था शायद ।
नीलम राकेश
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