डा.राधा वाल्मीकि
गगनचुम्बी पर्वतमाला पर,
उत्तराखंड की छटा निराली।
पहाड़ की पगडंडियां दिखातीं,
नैसर्गिक सुषमा हरियाली।।
सुरम्य वादियां अपनी गोद में,
बाहें फैलाए बुला रहीं हैं।
ठंडी-ठंडी शीतल पवन,
मन को बड़ी लुभा रही है।।
पहाड़ की पतली पगडण्डियां,
सर्पिणी सी नजर आ रहीं हैं।
घाटियों गलियारों के बीच में,
पैदल राहें दिखा रही है॥
कहीं चोटि पर पहुँचा देतीं हैं,
सुन्दर दृश्य दिखातीं हैं।
कहीं जगंलों,बीहड़ों से निकल,
सुदूर ग्राम में ले जातीं हैं॥
इन्ही पगडंडियों पर चलकर,
चरवाहे मवेशी चराते हैं।
जंगल से महिलाऐं बच्चे,
लकड़ियां ,चारा काट लाते हैं॥
मोटरगाड़ी जहाँ पहुँचा नहीं पाती है,
वहाँ ये पैदल,खच्चरों से पहुँचाती है।
यही तो पहाड़ के दूरस्थ गांवों की,
जीवन रेखा कहलाती है॥
पहाड़ों के उर में ले जाने वाली,
राहें जो दिखला रहीं हैं।
लम्बी लहराती हुई सड़कें,
नागिन सी बल खा रहीं हैं।।
नील गगन की छांव पर्वतों पर,
इस तरह नजर आयी है।
मानों खुद कुदरत आकाश की,
बाहों में समायी है।।
झर-झर झरनों की आवाजें,
मधुर संगीत सुना रही हैं।
अपने मृदुल नीर से नदियां,
तृष्णा हमारी बुझा रहीं हैं।।
रंग-बिरंगी फूलों की घाटियाँ,
वातावरण महका रहीं हैं।
फलदार वृक्षों की कतारें,
पल-पल हमें ललचा रही हैं।।
कहीं बादलों के कुछ टुकड़े,
घाटियों में यूँ बिखरे हैं।
मानों ऊँचाइयों से उतरकर,
ज़मीन चूमने वो निकले हैं ।।
नजर घुमाकर जिधर भी देखो,
कुदरत की है छटा निराली।
पहाड़ की पगडंडिया दिखाती,
उत्तराखंड की सुषमा निराली॥
*डा.राधा वाल्मीकि*
(शिक्षिका समाजसेविका कवयित्री)
पंतनगर उत्तराखंड