!!मेरा हृदय उद्गार!!
गिरिराज पांडे
मां के चरणों में जाकर के
अपना शीश झुकाता हूं
मिलती है शीतलता बहुत ही
जब पास मै मा के जाता हूं
मिलती शांति हमेशा मुझको
जब जब उनको देखूं मैं
भाव हमारा शीतल होता
पास में जब जब बैठू मैं
तब एक सहारा जीवन में
हर दम ही मां का पाता हूं
मां की शरण में बैठ के हर दम
अपना शीश झुकाता हूं
धन्य धन्य है भाग्य हमारा
आशीष जो उनका पाता हू
मा की हर एक बातों पर
विश्वास हमेशा करता हूं
साथ में बैठकर बात करूं तो
खुशहाल हमेशा रहता हूं
जब जब दूर रहूं मैं उनसे
याद बहुत ही आती है
कितनी जल्दी उनसे मिलूं मै
सोच आंख भर आती है
संग जो बीता समय यहां पर
याद बहुत ही आता है
इनका साथ छोड़ कर तो मैं
कभी नहीं फिर जाता हूं
भरी हुई आंखें लेकर भी
पास में मां के जाता हूं
मां के चरणों में जा कर के
अपना शीश झुकाता हूं
गिरिराज पांडे
वीर मऊ
प्रतापगढ़