नीलम राकेश
‘‘कहाँ गया ?................कहाँ गया ?’’
‘‘चला गया’’
‘‘अरे तुमने उसे जाने दिया ? हम तो पुलिस को फोन कर आये हैं ।’’
‘‘मुझे लगा उससे बड़े चोर तो हम स्वयं हैं । इसीलिए.........................’’
‘‘अरे । पागल हो गये हो क्या?’’
‘‘क्यों ? ........... सच्चाई का सामना क्या कर सकेंगे आप लोग ?’’
‘‘कैसी सच्चाई ?’’
‘‘तुम्हारी मासिक आय तीस- चालीस हजार रूपये है । लेकिन हर महीने कोई न कोई नई चीज घर आती है । ................और.................पच्चास हजार मासिक आय वाले शर्मा जी को शौक है हर वर्ष अपना सोफा बदलने का जो तीस- चालीस हजार से कम का नहीं होता जबकि उनका परिवार लम्बा चौड़ा है।’’
‘‘अरे..................हमारी आमदनी और खर्चे से तुम्हें क्या लेना देना ?’’ शर्मा जी तैश में आ गये ।
‘‘क्षमा करें शर्मा जी मैं किसी पर अंगुली नहीं उठा रहा । पूछना चाह रहा हूं कि क्या कोई जानता है उस चोर ने क्या चुराया था ?’’
‘‘..........................’’
‘‘जानते हैं, उसने मेरे घर से थोड़ा सा खाना अपने भूखे भाई-बहनों के लिये चुराया था । ...................जबकि......................इन सुख-सुविधाओं को पाने के लिए हम सब भी तो.........................’’
सभी एक-एक कर सिर झुकाए खिसकने लगे । अपने अन्दर छुपे बड़े चोर का सामना करना क्या आसान था ।
नीलम राकेश
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