आशा

 डाॅ. पुनीता त्रिपाठी

अपनी ही हंसी , अपना ही गम हैं |

आंखे भी अपनी जाने क्यूं नम हैं ||


जज्बा है जिन्दगी फिर रोते हम हैं |

बचाये रहे दामन खुशियों में दम हैं ||


नहीं हैं कोई दुश्मन निर्मल मन हैं |

प्रेम विश्वास अपनत्व अपना धन हैं ||


जग में दुखों की फैली बदलियां हैं |

चहुंओर संशय , दुख के विभ्रम हैं ||


हताश , निराश क्यों इतना हम हैं | 

वो पालनकर्ता प्रभु पास हरदम हैं ||


         स्वरचित- डाॅ. पुनीता त्रिपाठी

          शिक्षिका, महराजगंज, उ. प्र.

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