मातृदिवस पर विशेष
प्रेम बजाज
क्या तुलना उस मां की सुरज- चांद - सितारों से
गंगा से ,जमुना से , समुद्र से या नदियां हज़ारों से ।
मां की ममता का कोई मोल नहीं , दुनियां में इसके
बराबर दुनियां में कोई मीठा बोल नहीं ।
सुख का सागर है मां , प्यार की गागर है मां , जब ना
मिला इश्वर को कोई अपने समय तो धरती पर भेजी मां ।
कहां कोई लिख सकता मां के लिए , मां तो मां होती है
आंखों में आंसु खुशी के हैं या ग़म के पल में पहचान लेती है ।
मान- अपमान धरा सी सब सहती है , अन्धकार में भी
उजाला देती , इसके दूध का कर्ज कहां कोई चुका सका
अंबा - धात्री , जननी , गुरू , इश्वर सभी में ही समाई मां ।
देती जन्म, शिक्षा, संस्कार, इन्सानियत का पाठ पढ़ाती मां
बच्चों के लिए हर पल दुआ करती और दुआ बन जाती मां ।
जीवन पथ पर आगे बढ़ना सीखाती मां ,
मेरी ताकत, मेरा साहस , मेरी मां ।
प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर )