इस बार मैंने पपीते का पेड़ लगाया

 


अमृता पांडे

फलों की शौकीन मैं, हर फल मेरे मन को भाया

जाड़ों में कीनू, माल्टा और संतरा खूब खाया

ज्यूं आने लगी गर्मियां, बाजार में खरबूज, तरबूज

मौसम्बी, हरे और बैगनी अंगूरों ने रंग जमाया। 


फिर  पिछले साल यह दुखद कोरोना जो आया

सारे फलों के दाम छूने लगे आसमान

फलों से दूरी बनाना नहीं था मेरे लिए आसान

हां, यह तो बताना ही भूल गई

पीला रंग मेरा सर्वाधिक प्रिय रंग है। 


पीले परिधान, पीले फल यहां तक कि

पतझड़ के पीले पात भी मुझे भाते हैं

हां तो पीले रंग से पपीता याद आया

गई बाजार, पपीते के भाव का पता लगाया। 


सत्तर रुपये किलो ....

एक सब्जी वाले ने बताया

हो गई मैं हैरान परेशान

एक सौ पचास रुपये में 

दो किलो पपीता आया। 


सावन की रिमझिम फुहार पड़ने लगी थी

वन महोत्सव का विचार मन में आया

पहुंची सीधा नर्सरी, पपीते का पौध उठाया

इस बार मैंने पपीते का पेड़ लगाया। 


    अमृता पांडे

हल्द्वानी नैनीताल

देवभूमि उत्तराखंड

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