राजेश कुमार सिन्हा
ऐसा लगता है
मेरे आस पास/मीलों तक
आज अनगिनत सवाल
एक बारगी खड़े हो गए हैं
जिसका असर मेरी पेशानी पर
साफ साफ देखा जा सकता है
वैसे मेरा मन नहीं मानता है
वह बार बार कहता है
माफ़ करना ऐसा नहीं होता है
कुछ उथल-पुथल लम्बे समय से
चल रही होगी जिसका एहसास
शायद, तुम्हे आज हुआ है
तुमने यकीनन नजरअन्दाज़ किया होगा
तुम्हे क्या लगा पहाड़ों से बर्फ पिघलनी शुरु हुई
और बारिश पल भर में हो जायेगी
देखो,ऐसा होता नहीं कुछ बातें वक़्त लेती हैं
और पारखी नजर रखने वाले
अक्सर छोटे मोटे बदलावों को देख कर
होने वाली उथल-पुथल का अन्दाज़ लगा लेते हैं
तो शायद तुम यह कहना चाहते हो कि
मेरे पास पारखी नज़र नहीं है
ऐसा मैने नहीं कहा यह तुम्हारी सोच है
जाने दो यह समय बहस का नहीं है
यह बताओ इन सवालों से निपटा कैसे जाए ?
बड़ा आसान सा तरीका है यूँ समझ लो
बस तुम्हे सवालों के सामने सवाल खड़े करने हैं
यानी सवालों का जबाब सवालों से देना है
साफ साफ कहूँ तो सवालों की सियासत करनी है
उन्हेँ यूँ उलझा देना है कि वर्षों तक जबाब नही मिले
और सवाल का वाईरस इतना कमजोर हो जाये कि
वह एक अन्तराल के बाद दम तोड़ दे
पर इससे समस्या का समाधान नहीं होगा
पर समाधान करना चाहता कौन है?
कह्ते हैं न बन्द मुट्ठी लाखों की सकती है
खुल जाने पर सच्चाई सामने होगी
आशा है तुमने मेरी बात समझ ली होगी
यह काम इतना मुश्किल नहीं है
शायद जितना तुम समझ रहे होगे
उतना तो कदापि नहीं है
हाँ/खुद को मानसिक रुप से तैयार कर लो
ऐसा नहीं हो कि कालांतर में
इसका दु:स्वप्न ही तुम्हारी नींद उड़ा दे
राजेश कुमार सिन्हा
मुम्बई