महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी
मैना मटक रही है
तीतर भटक रहा है
सैयाद की निगाहें
अमृत गटक रही है।।
हाथों में उठी ऐंठन
अँगुली चटक रही है।।
बेबस हुई जवानी
आफत लटक रही है।।
नयनों का नूर काजल
चितवन खटक रही है।।
उस्ताद की अमीरी
पल पल छटक रही है।।
दिन रात सभी अपने
गरमी खटक रही है।।
पतझङ बसंत लाये
ऋतु वन फटक रही है।।
'गौतम' न गिला करना
महफ़िल झटक रही है।।
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी