अपना - सपना

 डॉ मधुबाला सिन्हा

मैंने देखा था कल एक सपना

जो बन जाय कहीं से अपना

पुतली में जो सपन सजाए

सच हो जाए मेरे मन भाए

रहे कल्पना से परे वह तो

जो मन मेरे रच बस जाए

जीवन का सिंगार बने फ़िर

घुल जाए जीवन वह सपना

मैंने देखा था कल एक सपना

जो बन जाए कहीं से अपना


चलता नहीं बहाने पे ज़ोर

नहीं ठहरता ठिकाने और

अरमानों के फूल खिले थे

दिए बनाकर दूसरा ही ठौर

कलियों ने चाहा खूब खिले

पूरा न हो पाया यह सपना

मैंने देखा था कल एक सपना

जो बन जाए कहीं से अपना


थे गगन से ऊँचे मेरे सपने

गगनचुंबी बना दिए तुमने

उड़ने को अब पँख-पंखेरू

तड़प रहे तोड़े सब सपने

ख़्वाब सजाए कुछ धुँधले 

बना न कोई अपना बेगाना

मैंने देखा था कल एक सपना

जो बन जाए कहीं से अपना....

  ★★★★★★

 डॉ मधुबाला सिन्हा

मोतिहारी,चम्पारण

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