बांसुरी

  

डा0 प्रमोद शर्मा प्रेम 

देख रहे हो 

मनमोहन 

सिर पर तुम्हारी बांसुरी 

मन में उम्मीदों का सागर 

पेट को झुलसाती भूख 

फिर भी होठों पर

स्वर लहरी 

मन मस्तिष्क

में तेरी भक्ति से 

आशा का सागर

तेरी दया की प्यास

घर में इंतजार करते 

छोटे छोटे बच्चे 

रोटी की उम्मीद में 

खिलौने भूल चुके हैं शायद

तुम इतना कठोर 

तो नहीं हो सकते कान्हा

अब बरसाओ ना 

अपनी दया 

इस बाँसुरी वाले पर 

इस सावन में

तुम्हारी राधा भी

इसे देखती तो 

यही कहती

गिरधर

इतने निष्ठुर

न बनो


डा0 प्रमोद शर्मा प्रेम 

नजीबाबाद बिजनौर

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