मनहरण घनाक्षरी


सुखविंद्र सिंह मनसीरत 

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बागों में है कली खिली,

दुनिया की खुशी मिली।

अब न कोई है गिला,

जान में जान आई।।

हिय में बहार छाई,

तन लेता अंगड़ाई।

खुशियाँ हजार लाई,

चलती है पूर्वाई।।


काली घनघोर घटा,

बादलों की प्यारी छटा।

बदली बरसती है,

भू की प्यास बुझाई।।


अधरों से छूता रहूँ,

गरमी को सदा सहूँ।

गले से लिपट जाऊँ,

दूर होगी तन्हाई।।


मनसीरत कहता है,

दुख दर्द सहता है।

मन में है चैन नहीं,

नैनो में नीर लाई।।

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सुखविंद्र सिंह मनसीरत 

खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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