भावना ठाकर 'भावू'
आजकल के बच्चें और युवा पीढ़ी की छवि भले ही 21 सदी वाली मार्डन और डिजिटल लगती हो पर ऐसा भी नहीं की धर्म और आस्था से परे होती जा रही है। ईश्वर में श्रद्धा और विश्वास अचूक रखते है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में आप सिर्फ़ बड़े बुज़ुर्गो को ही नहीं पाओगे, युवाओं को भी हाथ जोड़े नतमस्तक से पाओगे जोकि भारतीय संस्कृति का बेमिसाल उदाहरण है।
कई बच्चों को गायत्री मंत्र और हनुमान चालीसा पढ़ते हुए सुना है। संकट समय में मन्नत लेते और आँखें मूँदे ईश्वर को याद करते भी देखा है। हाई-फाई लाइफ़ स्टाइल और मोर्डन ख़यालात वाले लड़के लड़कियां भी स्कूल कालेज के परिणाम के वक्त मंदिरों का रुख़ करते देखे जाते है। साथ ही परीक्षा के समय या कहीं इन्टरव्यू देने जाते वक्त माँ बाप के पैर छूना और घर के मंदिर के आगे खड़े होकर ईश्वर का आशीर्वाद लेना नहीं चुकते। कई बार रास्ते पर आते-जाते मंदिर दिख जाता है तो भले मंदिर के अंदर जाकर मत्था न टेक पाए दूर से भी सीने पर हाथ रखकर नतमस्तक हो जाते है। साथ में नवरात्रि, जन्माष्टमी और गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों में बड़ी ही श्रद्धापूर्वक हिस्सा लेकर आनंद, उत्साह के साथ बड़ी धूमधाम से मनाते है।
चुनौतियों से भरी संघर्षपूर्ण ज़िंदगी जीते प्रतियोगिता के ज़माने में खुद को प्रस्थापित करने के लिए खुद की काबिलियत के साथ ईश्वर कृपा को भी उतनी ही अहमियत देते है।
शादी के वक्त हर पूजा और विधि विधान को बखूबी बड़ी श्रद्धा से समझकर निभाते है। अपने परिवार की परंपरा और धार्मिक भावनाओं के नक्शेकदम पर चलकर बच्चे एक आदर्श इंसान का उदाहरण बनकर उभर रहे है। वैसे ये सारी चीज़ें घर के वातावरण और परंपरा पर आधारित होती है। जिस घर में अध्यात्म भाव से हर रोज़ पूजा पाठ और बुज़ुर्गों का सम्मान होता है उस घर के बच्चे चाहे कितने ही मोर्डन क्यूँ न हो घर के संस्कार कभी नहीं भूलते। बच्चों में धार्मिक भावना बनाए रखना घरके बड़े बुज़ुर्गों का कर्तव्य है। अगर घर का वातावरण शांत, सुसंस्कृत और धर्मपरायण होगा तो अगली पीढ़ी पर उसका असर अवश्य दिखेगा।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु#भावु