आँख तो मिल गयी फासला रह गया।
अनकही बात का सिलसिला रह गया।।
रोज मिलते मिलाते रहे हम मगर।
फिर कहो क्यों शिकवा गिला रह गया।।
पूजते थे नदी को त्योहार पर।
दह गयी देह बस काबिला रह गया।।
कह सके अलविदा हम कहाँ यार को।
जो हिला हाथ मेरा हिला रह गया।।
सौंपकर दिल की जागीर खुश तो हुए।
नाम मिटते गये बस किला रह गया।।