कवियित्री अभिलाषा विनय की रचनाएं

 


अपना सा नज़र आये कोई


अपना सा नज़र आ जाये कोई,

बस प्रेम सुधा बरसाना तुम।

गर मिले धड़कता दिल कोई,  

आशीष, दया भर आना तुम।

किसी अंधेरे मन तक जाकर,

आशा के पात उगाना तुम।

वीरान रहे न स्वप्न धरा,

विद्वेष की पौध हटाना तुम।

कुछ नव रचना, कुछ नव गढ़ना,

वर्षा सुमधुर बन छाना तुम।

कोशिश करना इस जीवन में,

जीने की राह सिखाना तुम।

एकल एकाकी मौत मिले,

न ऐसा होने देना तुम।

हो दुःख में यदि जीवन बाती,

उसका कांधा बन जाना तुम।

इस धरती पर इंसान बसे,

कुछ ऐसा अनुपम करना तुम।

हो दुष्कर कर्म कोई कितना,

बन विजय रथी डट जाना तुम।

पाषण हृदय बन अड़े कोई,

तो प्रेम बीज बो आना तुम,

वाणी की कटुता सभी त्याग,

बस मिठास बरसाना तुम....



"कैसे भूलूँ माँ "


बाँटी हैं जो घड़ियाँ तुम संग,

उसको कैसे भूलूँ माँ,

सोच तुम्हें फिर थमूँ नहीं

वो जीवन कैसे भूलूँ माँ,

फ़ोन नहीं हो पाता है अब

फंसी हूँ कितने जालों में,

आओ माँ लगा दो मरहम 

मन के मेरे छालों में,

जब छोड़ा था आँचल तेरा,

लिए पिटारी यादों की,

तुम थी संग संग मेरे फिर भी,

बन छतरी हर भादों की,

थपकी-थपकी याद करूँ मैं

खवाबों को उन रातों को,

जब नैनो में लिए सवेरा,

माथे को सहलाती थीं,

जो मैं हूँ अब, आज बनी हूँ,

तभी गढ़ीं थीं माथे पे।

पार हो गए कई थपेड़े 

गोदी थी तेरी बाँहों की।

थाम लिया हर बार मुझे,

जब क़दम तोतले थे मेरे,

थक जाने पे, रुक जाने पे

क़दम भी अपने देती थीं,

मुझको हर तपती धूपों में

बदली सी ढक लेती थीं,

मेरी हर घुटती आशा को,

सूरज सी किरणें देती थीं।

आज समय की इस देहरी पे,

जब भी मुड़ के है देखा,

हो वही तुम्हीं जो मुझे सम्हारे,

हर क्षण की तुम जीवन रेखा।

  

अधूरा क्षितिज 


कभी ना भूलना मुझको, 

सिरा मेरा अधूरा है,

कभी जोड़ा नहीं तुमने 

मिला ना चाँद पूरा है।१।


जिये थे साथ जो लम्हे,

भरोसे की कहानी थे,

पहर ना एक ठहरी था

सवेरा वो अधूरा है।२।


रहे गुमनाम वो लम्हे

दिलो के तार भी गुम हैं,

बसा था बीच हम तुम के

वही रिश्ता अधूरा है।३।


लहर में डोलती कश्ती,

थपेड़े झेलती रहती,

हवाओं साथ तुम देना,

सफर अब तक अधूरा है।४।


चलो तुम साथ मत आना,

कहाँ कोई मुकम्मल है,

धरा भी साथ तकती है

क्षितिज सबका अधूरा है।५।


शहादत     


लुटाई जान माटी पे न सोचा एक पल को भी,

फलक तक गूँजती उनकी कहानी याद करती हूँ।


ये वो जज़्बात हैं जिनसे डरे है ये हिमाला भी,

ये वो अहसास है जो गर्व बन सजता है माथों पे,

ये है वो आग जो करती है भस्मीभूत दुश्मन को,

मैं वीरों की शहादत की रवानी याद करती हूँ।

फलक तक गूँजती उनकी कहानी याद करती हूँ।१।


यही तूफान है वो जो धुआँ करता है सागर को,

बहा करता है जो रग में नसों में खून सा बन के,

ये चिंगारी वही जो फूट उठती है दबाने से,

उसी आज़ाद की छूटी निशानी याद करती हूँ।

फलक तक गूँजती उनकी कहानी याद करती हूँ।२।


न रोयी थी वो माता भी था सींचा खून से जिसने,

धरा सा धैर्य धारण कर लुटाया लाल था जिसने,

लिये आँखों में आँसू जो बनी थी द्वार जो घर का,

उसी सूने से आँचल की कुर्बानी याद करती हूँ।

फलक तक गूँजती उनकी कहानी याद करती हूँ।३।


तने हैं लौह से तन के इरादों के लिये पत्थर,

खुले चट्टान से सीने सुलगती तेग हाथों में,

बरस पड़ते हैं दुश्मन पे घने बादल में बिजली से,

उसी माटी के वो किस्से रुहानी याद करती हूँ,

फलक तक गूँजती उनकी कहानी याद करती हूँ।४।


  साकार हो


साकार हो मेरे प्रभु,

अब पार मुझको उतार दो,

जग धार में व्याकुल पड़ी,

अब पंख दो विस्तार दो।

साकार हो......


जपती रहूँ तव नाम ही,

इस देह घट में आ बसो।

हे प्राणे'श्वर सुन लो व्यथा,

इस प्राण को आधार दो।

साकार हो.......


ये ज्योति निर्मल हो चुकी,

अब देर है किस बात की,

आओ प्रभू अब थाम लो, 

दे दो दया निस्तार दो।

साकार हो....


ये देह बासी हो चली,

भक्ति नहीं अब तक फली,

बाँहों में मुझको थाम लो,

मेरे नेह को आकार दो।

साकार हो...


हो प्रीत की छाया तेरी,

मेरे मन की गागर हो भरी,

नित ध्यान हो प्रभु चरण का,

मुझे मोक्ष दो, प्रस्तार दो।

साकार हो मेरे प्रभु...


चलो राह में संग ऐ रहगुज़र,


कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो।

जरा साथ बैठो करो बात कुछ,

कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो।१।


हुयी ख़ूबसूरत बहुत ज़िन्दगी,

मिले जब से तुम हो मेरे हमसफ़र।

मेरा हाथ हाथों में तुम थाम लो,

सफ़र ढल रहा है इसे रोक लो।

चलो राह में संग ऐ रहगुज़र,

कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो।२।


नये शब्द मुझमें सजाओ जरा,

बढ़ो संग उनके क़दम दर क़दम।

कई बात मेरी छुपी मुझमें ही,

भरो रंग उनमें सुनो तो सही।

चलो राह में संग ऐ रहगुज़र,

कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो।३।


मेरी स्वर लहरियों की मंज़िल बनो,

मेरे गीत में चाँदनी से सजो।

हरिक साँस की लय में गुंजन करो,

नयी सरगमों से सँवरते रहो।

चलो राह में संग ऐ रहगुज़र,

कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो।४।


लिखे सात फेरे हरिक गीत में, 

मेरे साथ फिर गुनगुनाओ सनम।

ये गीतों के भावुक भँवर हैं मेरे,

मुझे थाम लो आओ माँझी मेरे।

चलो राह में संग ऐ रहगुज़र,

कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो।५।

चलो राह में संग ऐ रहगुज़र,

कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो।

जरा साथ बैठो करो बात कुछ,

कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो।१।


हुयी ख़ूबसूरत बहुत ज़िन्दगी,

मिले जब से तुम हो मेरे हमसफ़र।

मेरा हाथ हाथों में तुम थाम लो,

सफ़र ढल रहा है इसे रोक लो।

चलो राह में संग ऐ रहगुज़र,

कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो।२।


नये शब्द मुझमें सजाओ जरा,

बढ़ो संग उनके क़दम दर क़दम।

कई बात मेरी छुपी मुझमें ही,

भरो रंग उनमें सुनो तो सही।

चलो राह में संग ऐ रहगुज़र,

कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो।३।


मेरी स्वर लहरियों की मंज़िल बनो,

मेरे गीत में चाँदनी से सजो।

हरिक साँस की लय में गुंजन करो,

नयी सरगमों से सँवरते रहो।

चलो राह में संग ऐ रहगुज़र,

कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो।४।


लिखे सात फेरे हरिक गीत में, 

मेरे साथ फिर गुनगुनाओ सनम।

ये गीतों के भावुक भँवर हैं मेरे,

मुझे थाम लो आओ माँझी मेरे।

चलो राह में संग ऐ रहगुज़र,

कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो।५।


  ✍️ अभिलाषा विनय


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