आभा सिंह
1- पत्रहीन पीपल हुए ,खंखड़ हुए बबूल।
राही को छाया हुई,ज्यों गूलर का फूल।।
2- ढोल बजाकर जो सदा,बरसाते हैं ज्ञान।
अपने मन में भी कभी,झाँके वे श्री मान।।
3-आँखों में ज्वालामुखी,होंठों पर विषधार।
व्याघ्रों से बढ़कर हुआ,आज मनुज खूँखार।।
4-नेकी कर जग में सदा, अरु दरिया में डाल।
प्रभु किरपा से होयगा, जीवन यह खुशहाल।।
5-कहते हैं जो कर भला, मिले भला परिणाम।
सबका ही प्यारा बने, होत जगत में नाम।।
आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश