पाँच दोहे(स्वतंत्र)




आभा सिंह 

1- पत्रहीन पीपल हुए ,खंखड़ हुए बबूल।

   राही को छाया हुई,ज्यों गूलर का फूल।।


2- ढोल बजाकर जो सदा,बरसाते हैं ज्ञान।

    अपने मन में भी कभी,झाँके वे श्री मान।।


3-आँखों में ज्वालामुखी,होंठों पर विषधार।

   व्याघ्रों से बढ़कर हुआ,आज मनुज खूँखार।।


4-नेकी कर जग में सदा, अरु दरिया में डाल।

प्रभु किरपा से होयगा, जीवन यह खुशहाल।।


5-कहते हैं जो कर भला, मिले भला परिणाम।

सबका ही प्यारा बने, होत जगत में नाम।।


आभा सिंह 

लखनऊ उत्तर प्रदेश

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