सब हो गया ऑनलाइन
छीन लिया लिखने पढ़ने का वह सारा उत्साह,
सभी सूचना इसी से आती मुंडन हो या व्याह,
सब हो गया ऑनलाइन अब तुरत से मैसेज मिलता,
इंतजार में बहुत प्यार था अन्तर्देशी या पोस्टकार्ड,
जैसे ही दिखता था डाकिया आते घर की ओर,
दौड़े दौड़े सब जाते थे देखो उसकी ओर,
अगर कोई चिठ्ठी होती थी मन हो जाता खुश था,
जो आनन्द था तब मिलता न अब है किसी मे आता,।।
मन की बाते पत्र में होती जो अब तक है रख्खी,
यादे उस चिठ्ठी में होती चाहे खट्टी मीठी,
उन चिठ्ठी को पढ़कर अब देखो मन है मुस्काये,
काश कोई चिठ्ठी लेकर के आज डाकिया आये,।।
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सादर कुँवर बेचैन
भारत माँ के लाडले और थे उसके नैन,
कहते थे सब उनको सादर कुँवर बेचैन,
कविताओं के संग्रह उनके आज है उनकी याद,
सभी प्यार से पढ़ते उनको चाहे दिन या रैन,।।
भारत माँ के लाडले थे वो कुँवर बेचैन,।।
जन जन में लोकप्रिय बहुत थे करते थे सब प्यार बहुत,
मंच पे उनसे शोभा आती,
कविताओं में प्यार बहुत,
उनके जाने से नम है जन जन के अब नैन,,
भारत माँ के लाडले थे वो कुँवर बेचैन,।।
अंत समय जब उनको कोविड ने देखो घेरा,
देश हो गया चिंतित लगा मृत्यु का फेरा,
सब शिष्यों ने किया प्रयास छोड़ सुख और चैन,
भारत माँ के लाडले थे वो कुँवर बेचैन,।।
श्रधांजलि आज दे रहा देखो पूरा देश,
जिसके कारण बन गई कविता आज विशेष,
याद हमेशा आप रहोगे,
नम सदा रहेंगे नैन,,,
नमन आपको कर रहा देश हुआ बेचैन,।।।
गोविन्द गुप्ता,
लखीमपुर उत्तर प्रदेश