ग़ज़ल 1.
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आँखों से मेरी आज भी उल्फ़त के आँसू बह रहे
अब ज़िन्दगी बर्बाद है शुहरत के आँसू कह रहे
पलकों पे ख़्वाबों को नहीं देखा कभी सजते मगर
माहौल अब ऐसा हुआ नफ़रत के आँसू सह रहे
ये बह रही कैसी हवा अपने चमन में रोज़ - रोज़
इससे तो भाईचारे ओ राहत के आँसू ढह रहे
सहमी हुई है ज़िन्दग़ी मंज़र अभी का देखकर
छुप-छुप के आँखों में मेरी चाहत के आँसू रह रहे
औलाद की खुशियाँ हरिक माँ-बाप रब से माँगता
माँ-बाप की आँखों में तो शामत के आँसू ज़ह रहे
शहज़ोर अक्सर ही सताता आ रहा कमज़ोर को
मज़लूम का हर वक़्त ही किस्मत के आँसू शह रहे
क्यूँ चाँद - तारे रश्क करते हैं मेरे महबूब पर
महबूब का चेहरा दिखा ज़ीनत के आँसू बह रहे
'ऐनुल' ख़सारा रोज़ फूलों का किया है बाग़बाँ
हैं सब्ज़ बाग़ों में बहुत ग़ारत के आँसू कह रहे
ग़ज़ल 2.
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मुहब्बत मेरी आज ज़ाया नहीं कर
मुझे आज ख़ुद से पराया नहीं कर
न जाने ये नफ़रत जलायेगी किसको
मेरे दिल को अब तू सताया नहीं कर
मेरा आज दामन तो खुशियों से भर दे
दुबारा ग़मों का ये साया नहीं कर
समंदर बसाकर के आँखों में मेरी
ज़माने में मुझको नुमाया नहीं कर
नहीं बेवफ़ाई कभी मेरे दिल में
ये इल्ज़ाम मुझपे लगाया नहीं कर
नहीं तुमसे सोना व चाँदी मैं चाहूँ
मगर आज से फिर रुलाया नहीं कर
मुझे दिल के कोने में कुछ तो जगह दे
मेरे सब्र को आज़माया नहीं कर
क़सम है मेरी आज तुझको ये 'ऐनुल'
किसी और पे दिल लुटाया नहीं कर
ग़ज़ल 3.
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प्यार से पास में ज़िन्दगी आ गयी
लौटकर आज मेरी खुशी आ गयी
शुक्रिया है ख़ुदा का मुझे तुम मिले
देखते - देखते आशिक़ी आ गयी
थे अँधेरे मेरी ज़िन्दगी में जहाँ
तेरे आने से अब रौशनी आ गयी
जबसे रहमत की बारिश हुई मेरे घर
तो ख़ुदा की मुझे बंदगी आ गयी
दिन फ़क़ीरी में जबसे गुज़रने लगे
मेरे किरदार में सादगी आ गयी
हम दिखाये नहीं ज़ख़्मे-दिल आपको
आपकी आँख में क्यूँ नमी आ गयी
ख़्वाब पलकों पे हम भी सजाये बहुत
क्यूँ मुक़द्दर में ये मुफ़लिसी आ गयी
इश्क़ में दिल जो टूटा , जुड़ा फिर नहीं
आज 'ऐनुल' मगर शाइरी आ गयी
'ऐनुल' बरौलवी
गोपालगंज (बिहार)