सपने सजाएं

 

किरण झा

नयी उम्मीदें

नई आशाएं चलो आज फिर सपने सजाएं

हर दुविधा को काट चलें हम

राहें अपनी खोज चलें हम


छोड़ कर कठिनाइयों को पीछे

कदम बढ़ाते आगे जाएं

चलो आज फिर सपने सजाएं


नई पौध को सींचना होगा

हरियाली को लाना होगा

पाने खातिर मंजिल हमको

अपनी हिम्मत आजमाएं

चलो आज फिर सपने सजाएं


धूप हवा गगन औ धरती

साथ हमारे सारी प्रकृति

फिर क्यूं इतना सोचना हमको

जग को दावानल से बचाएं

चलो आज फिर सपने सजाएं


पुष्पित, पल्लवित धरा गुनगुना रही

झरने की कल-कल उत्साह बढ़ा रही

दोस्ती इन वादियों से कर लें

और चिड़ियों जैसे चहचहाएं

चलो आज फिर सपने सजाएं


हर तुफां से टकराना है

बबंडर दूर भगाना है

दिग दिगन्त हो आह्लादित  

हिम चोटी पर चढ़ जाएं

चलो आज फिर सपने सजाएं


अपने भाल की रेखाओं को

हर विपदा के रुकावटों को

हौसले के भंवर में "किरण"

आज मिलकर डूबो आएं

चलो आज फिर सपने सजाएं


 ✍🏻 स्वरचित

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