खिल सा गया मैं

 


अतुल पाठक "धैर्य"

उसने लफ़्ज़ों से स्पर्श किया,

और खिल सा गया मैं।


उसका बेहिसाब बरसना,

और महक सा गया मैं।


संकुचित है मन मेरा,

मृत मरु का मैं पड़ा।


कहना जो भी चाहा था,

वो कह भी न पाया मैं।


उसके नेह से भरते हैं प्रश्न,

निरुत्तर सा मैं खड़ा।


उसने लफ़्ज़ों से स्पर्श किया,

और खिल सा गया मैं।


बात इतनी सी ही थी,

मगर सही जाए न।


खूबसूरत इतनी थी वो,

कि उससे नज़र हटाई जाए न।


कशमकश में उलझा रहा,

नासमझ दिल सा हूँ मैं।


उसने लफ़्ज़ों से स्पर्श किया,

और खिल सा गया मैं।

@अतुल पाठक "धैर्य"

जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)

Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
सफेद दूब-
Image
गाई के गोवरे महादेव अंगना।लिपाई गजमोती आहो महादेव चौंका पुराई .....
Image
अर्जुन तुम प्रतिकार न करके
Image
प्रेरक प्रसंग : मानवता का गुण
Image