प्राणवायु सबकी जिम्मेदारी

 



हर तरफ एक डर,है हर ओर तन्हाई,

एक तरफ कुआँ तो एक तरफ खाई,

आज जिंदगी हमें किस मोड़ पर ले आई,

कोई रास्ता नहीं सूझता मदद करे कोई,

 मन प्रभु को पुकारता है नहीं दिखे कोई,

अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी खुद ही मारी,

महल बनाया हमने और पीपल काटे भारी,

भौतिक साधनों से अब वायु ने सुचिता खोई,

प्रकृति का शोषण किया सुख शांति गँवाई,

प्राणवायु कम होने लगी साँसें घुटने आयी,

अपनी करी गलती आज पलटकर आई,

जल में घुल गया जैसे सर्पों का विष कोई,

साँसों को भी अब जैसे रोक रहा है कोई,

दुनिया पछता रही अपनी करनी पर रोई,

एक मौका जिंदगी में फिर से दिला दे कोई,

सब मिलकर इस धरती को स्वर्ग बनायेंगे,

फिर ऐसी शिकायत दुबारा न होगी कोई,

प्रकृति और सेहत दो ही अनमोल धरोहर,

आज बात ये सारे जग के समझ में आई,

वट पीपल नीम लगाओ प्रायश्चित की बारी,

प्राणवायु मिले अगली पीढ़ी को सबकी जिम्मेदारी।


नीलम द्विवेदी

रायपुर, छत्तीसगढ़।

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