मनु प्रताप सिंह
अतीत के नयन , समक्ष झुके पराधीीनता का।
माँगती हैं भारत माँ , बलिदान स्वाधीनता का ।।
सिकंदर भारी सपने लाया, बना डाला आर्यवर्त क्षिप्त।
नीति वीरता का उफान ले, चन्द्र ओर चाणक्य सलिंप्त।
चकनाचूर विश्वविजेता, था गवाही प्राचीनता का।
माँगती हैं भारत माँ , बलिदान स्वाधीनता का ।1।
कट्टर कासिम जिहादी आया , गिद्धों ने लाशें खायीं।
दाहिर अड़ा अरबो से ,और योद्धा की वीरगति पायीं।
मटियामेट बिखरा सिंध , भग्नावशेष प्राचीरता का।
माँगती हैं भारत माँ , बलिदान स्वाधीनता का ।2।
गजनवी गौरी लुटेरे थे , जो करते अस्मिता लहूलुहान।
पर जहन्नुम पहुँचाता उन्हें, चौहान का शब्दभेदी बाण ।।
सलाखों से निकली आँखे, गवाही अजरता का।
माँगती हैं भारत माँ , बलिदान स्वाधीनता का ।3।
त्यागी घास की रोटी खाकर , बने प्रातःस्मरणीय ।
मातृभूमि के रक्षार्थ मरे थे , वे हमारे अनुकरणीय।।
विविधता से पूर्ण राष्ट्र , प्रतीक समरसता का।
माँगती हैं भारत माँ , बलिदान स्वाधीनता का ।4।
इंग्लिशस्तान बना इंडिया , मनभेद फूट से बना डाला।
इधर झांसी तो उधर टोपे ने , जोरदार विस्फोट सुना डाला।
वीर तो कहीं श्रंगार से लबरेज , था गुण महानता का।
माँगती हैं भारत माँ , बलिदान स्वाधीनता का ।5।
गोरे लुटेरे करे शुरू , युद्ध प्लासी ओर बक्सर ।
पर नींव तोड़ गये, बोस और भगत के लश्कर।।
हिलोरे मारते फांसी के फंदे , प्रतीक स्वतन्त्रता का।
माँगती हैं भारत माँ , बलिदान स्वाधीनता का ।6।
मनु प्रताप सिंह चींचडौली, खेतड़ी