कवियित्री सवि शर्मा की रचनाएं

 


“ठहर ना जाना प्रिय “


पाँव कंटक चुभे तो क्या 

अंखियन आँसू भरे तो क्या 

पथ धुंधला दिखे तो क्या 

ठहर ना जाना प्रिय 


कुछ अपनों की दूरी है 

मिलने की मजबूरी है 

अभी समय रोक रहा 

ठहर ना जाना प्रिय 


डगर डगर सुनी है 

उपवन कानन ख़ाली है 

चिड़िया तितली पूछ रहे 

ठहर ना जाना प्रिय 


ठहरे है जो जीवन के पंछी 

साँसे उनकी पूछ रही हैं 

कोई हाथ बढ़ाए तो 

ठहर ना जाना प्रिय 


भरे सागर पीर में भी 

तुमने सबको सम्भाला

भोर लालिमा सा पंथ दिखाना 

ठहर ना जाना प्रिय 


श्रम से तुम्हारे घर बचेंगे 

नेह मोती अपनों के झरेंगे 

आँखों में अभी काजल पिरोना 


ठहर ना जाना प्रिय 


दे रहे साँसों को गति

लाखों की उम्मीद बढ़ी 

थक रहे पाँव तुम्हारे फिर भी 

ठहर ना जाना प्रिय 


तोड़ना है स्याह उदासी 

मौसमों की बढ़ी दुश्वारी 

हो तुम्हीं अब ईश्वर सरीखे 

ठहर ना जाना प्रिय 


पोंछनी चेहरों से उदासी 

छूटे जिनके है हमराही 

देना है सम्बल उनको 

ठहर ना जाना प्रिय 


नई मानवता लिखना 

गीतों की नई धुन बुनना 

बचाना अभी इंसान है

 ढहर ना जाना प्रिय 


विजयादशमी 

हाइकु 


अश्विनी मास 

हो विजया दशमी 

पुनीत पर्व


दशहरा पर्व 

ह्रदय हर्ष अपार 

सत्य विजयी 


पावन पर्व 

तन मन उजियारा 

मंगल गान 


घर बनाते 

गोबर से रावण 

पूजा अर्चना 


मूक बनते 

देखते अत्याचार 

साधु बनते 


कब आओगे 

व्यभिचार है व्याप्त 

पुरुषोत्तम 


विष ह्रदय 

काम क्रोध अन्याय 

पुकारू राम 


जीवित पाप 

हस रहा रावण 

अर्चना व्यर्थ 


मन विकार 

आज जलाओ पाप 

निर्मल मन 


“करवा चौथ “


ले आया ख़ुशियाँ सौभाग्य मेरे अंगना 

उतरता आसमान से चौथ का चाँद धीरे धीरे 

ले केसरिया रंग सुनहरा बरसाए नेह 

करूँ शृंगार पिया मनभावन आज तेरे लिए 

हो लम्बी उमरिया यही वर माँगू गौरा तुमसे आज 

हो साथ हर जन्म का यही आशीष माँगू माँ मेरे लिए 

प्रेम कभी कम ना हो हमारा जीवन महकता रहे 

रहे सिंदूर चमकता गाऊँ प्रेम धुन तेरे लिए 

बिंदी चूड़ी कंगना चमके मेंहदी रचे हाथ 

आलता रचे पग में पायलिया करे पुकार तेरे लिए 

ओ चंदा अब देर ना कर पिया मोरे साथ 

कर रही पूजन को इंतज़ार चंदा तेरे लिए 

करूँ आरती तेरी पिया संग मंगल गीत गाऊँ 

हो अटल सुहाग मेरा यही वर दीजो आज मेरे लिए 


गया वक्त


माँ ने रास्ता देखा 

पर बेटा नज़र ना आया 

क्या सच में आज 

ख़ुशियों का त्योहार आया 

मुझसे वादा किया था 

मेरे लाल ने लौटूँगा हर त्योहार में 

भूल गया क्या रास्ता 

जो तू आज ना आया 

तेरे बिन मेरी कैसी होली दिवाली है 

जिस दिन घर बच्चा हो वही दिवाली है 

बेटा कहता माँ में ना आ पाऊँगा 

वक्त नहीं है फिर 

वही क़िस्सा दोहराया 

बच्चे की ख़ातिर फिर 

माँ ने आंसू पी लिए 

रहे सदा ख़ुश जहाँ भी 

यही आशीर्वाद निकल पाया 

राह तकते आँखे पथरा गई 

वक्त वापिस माँ को लौटा ना पाया

आया बेटा तब माँ जा चुकी थी 

रोकर माफ़ी भी वो माँग ना पाया 

वक्त रहते बचा लो हर रिश्ते को 

वरना कौन है जो जाने वाले को 

लौटा कर ला पाया 


“ठहर ना जाना प्रिय “


पाँव कंटक चुभे तो क्या 

अंखियन आँसू भरे तो क्या 

पथ धुंधला दिखे तो क्या 

ठहर ना जाना प्रिय 


कुछ अपनों की दूरी है 

मिलने की मजबूरी है 

अभी समय रोक रहा 

ठहर ना जाना प्रिय 


डगर डगर सुनी है 

उपवन कानन ख़ाली है 

चिड़िया तितली पूछ रहे 

ठहर ना जाना प्रिय 


ठहरे है जो जीवन के पंछी 

साँसे उनकी पूछ रही हैं 

कोई हाथ बढ़ाए तो 

ठहर ना जाना प्रिय 


भरे सागर पीर में भी 

तुमने सबको सम्भाला

भोर लालिमा सा पंथ दिखाना 

ठहर ना जाना प्रिय 


श्रम से तुम्हारे घर बचेंगे 

नेह मोती अपनों के झरेंगे 

आँखों में अभी काजल पिरोना 

ठहर ना जाना प्रिय 


दे रहे साँसों को गति

लाखों की उम्मीद बढ़ी 

थक रहे पाँव तुम्हारे फिर भी 

ठहर ना जाना प्रिय 


तोड़ना है स्याह उदासी 

मौसमों की बढ़ी दुश्वारी 

हो तुम्हीं अब ईश्वर सरीखे 

ठहर ना जाना प्रिय 


पोंछनी चेहरों से उदासी 

छूटे जिनके है हमराही 

देना है सम्बल उनको 

ठहर ना जाना प्रिय 


नई मानवता लिखना 

गीतों की नई धुन बुनना 

बचाना अभी इंसान है

 ढहर ना जाना प्रिय 


सवि शर्मा 

देहरादून



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