कुछ सतरंगी सपने बनते हैं

 युवामन 



श्रीकांत यादव  


लहरों सी उर्मियां उठती हैं, 

हृदय की पुलक बढ जाती है |

बालपन से आती जवानी में, 

अल्हड़ता झलक दिखलाती है ||


हाव भाव बदलते दिखते हैं, 

दिखती पुष्ट बनावट भी |

बढता है आकर्षण चेहरे का, 

बढ जाती कुछ दिखावट भी ||


मुखाकृति पर लालिमा छाती, 

पुष्ट कंधे उचकने लगते हैं |

चाल बलि बलि खाती है, 

कुछ सतरंगी सपने बनते हैं ||


इस अल्हड मस्त जवानी में, 

सुरा सी मद घुल जाती है |

मदमस्त पुलकन बढने से, 

चितवन मन भरमाती है ||


युवा मन के सुनहरे सपने, 

मूर्त अमूर्त सब कुछ होते हैं |

यही दिशा दशा तय करती है, 

आदर्श यथार्थ रूप ले लेते हैं ||


युवा पग अर्थवत् हो जाते, 

जीवन यथार्थ धरातल पर |

हर दृष्टि परखती रहती है,  

कंटक युक्त असमतल पर ||


धैर्य धरा सा जिस युवा का, 

ज्ञान सागर सा हो लहराए |

लक्ष्य बांधकर भेद दे जो, 

वही विजय पताका फहराए ||


संकल्पों में जिसके दृढ़ता हो,

मदमस्त हिमालय चोटी का।

वह आन में आगे बढ़ जाए,

जो भूखा इज्जत की रोटी का।।


मस्त कलंदर आदत जिसमें,

वह भटक भड़क भड़कायेगा।

यदुवंशी जिस खून में ऊर्जा है,

चढ़ शिखर मौज में गाएगा।।


श्रीकांत यादव  

(प्रवक्ता हिंदी)

आर सी -326, दीपक विहार

खोड़ा, गाजियाबाद

उ०प्र०!

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