देखते ही देखते ये पल में क्या हो गया
जिंदगी चलते-चलते बदहाल हो गई
शहरवासी एशो-आराम से महलों में बैठे
गांव की जनता नंगे पैर भूखे पेट घर से
लाकडाउन में सड़कों पर बिरान हो गई
गठरी सिर पर रखी घर की जिम्मेदारी है
कंधे पर बैठी बच्ची हमारी राजकुमारी है
दूसरी ओर बेटी पिता को साईकिल पर बैठा
1000 किमी अपने गांव के लिए ले जा रही है
गर्भवती महिला का सड़क पर प्रसव हो गया
भयावह दृश्य से जीवन में भूचाल हो गया
फिर भी आंखें मूंदे रह गई सरकार हमारी
कहीं पर निशुल्क राशन वितरण की तैयारी
तो कहीं गरीब जनता से बंदरबांट की जारी
भले ही चलते-चलते सब आगे निकल गये
पर पीछे मुड़कर क़दमों के निशान तो देखो
दावा करता हूं मैं आशीष आप सबसे की
छिपी मिलेगी शिकन गरीबी और लाचारी।।
*आशीष भारती*
लेखक/ कवि/ समीक्षक
(प्रशासनिक सहायक: फार्मेसी कॉलेज बडूली)
सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)